Monday, December 26, 2011

|| क़हर सुनामी ||

छब्बीस दिसंबर का दिन था, थी रज़नी शांत सुहानी |
रविवार  सवेरा  होते  ही,  ले  आयी  क़हर  सुनामी ||

अपनों से अपने छूट गए, घर-बार ज़ानवर डूब गए,
भीषण तूफानी सागर में, भारत के हिस्से सिमट गए |
नहीं किसी की चली, लहर ने ऐसी की मनमानी ||
रविवार सवेरा होते ही.........................................||
दिन लगता रात भयानक हो, मौतों का नंगा नाच हुआ,
बालक - बूढ़े - औरत डूबे, कुदरत ने रहम कहीं न किया |
हिंद  महासागर  तह  से, आयी  वो  लहर  सुनामी ||
रविवार सवेरा होते ही...........................................||
कई अपनी जान बचाने में, अपनी ही कब्र खुदा बैठे,
मानवता की रक्षा के लिए, कई अपनी जान गँवा बैठे |
जीवन की खातिर जीवन दे, कर गए सफल जिंदगानी ||
रविवार सवेरा होते ही...............................................||
बे-घर, बे-दर, बे-गानों की, फिर से दुनियां आबाद हुयी,
उज़ड़ी दुनियां इंसानों की, फिर से गुलशन एक बार हुयी |
मानवता  के  जज्बे  में,  ना  दिखी  कहीं  बे-मानी ||
रविवार सवेरा होते ही.............................................||
जो बिछुड़ गए, जो उज़ड़, दिन उनकी याद दिलाता है,
आँखों से गुज़रा वो मंज़र, फिर आंसू को छलकता है |
आओ मिलकर सच्चे मन से, दें उनको आज सलामी ||
रविवार सवेरा होते ही...............................................||

Thursday, December 22, 2011

गुरु-जन

ईश्वर से भी बड़ा है, गुरुजन का स्थान,
ऐसे मानवश्रेष्ठ को, शत-शत बार प्रणाम|
माटी का पुतला बना, करता श्वांस प्रदान,
गुरुजन के ह़ी यतन से, बनता वह इन्शान|
कोरा तन-मन भेजकर, देता उसे जहान,
पढ़ा-लिखा दें प्रेरणा, गुरुजन का है काम|
मानव को घेरे खड़ा, चहुँ तरफ अज्ञान,
स्वयं सुपुर्द-ऐ-ख़ाक हो, गुरुजन देते ज्ञान|
'तमसो मा ज्योतिर्गमय', मांगें सब वरदान,
गुरुजन के सानिध्य बिन, राह नहीं आसान|
गुरुजन के निर्देश का, सदा करें सम्मान,
जीवन की कठिनाइयाँ, लगती फूल सामान|
भांति-भांति के तज्ञ हैं, दुनियां का सम्मान,
गुरुओं ने ह़ी किया है, उनका अनुसंधान|
इसी सबब में भी करूँ, उनका आज आव्हान,
गरिमा गुरु-पद की सदा, बनी रहे ये शान|

Wednesday, September 14, 2011

श्रमिक प्रशिक्षण केंद्र

यह श्रमिक प्रशिक्षण केंद्र यहाँ व्यक्तित्व संवारे जाते हैं |
यहाँ देश - धर्म - मानवता के सब पाठ पढाये जाते हैं ||
श्रमिकों की शिक्षा क्या है हम कैसे इसका उपयोग करें,
क्यों इसकी जरूरत पड़ती है कैसे हम इसको ग्रहण करें?
सब  प्रश्नों  के  उत्तर  सबको  बे-वाक्  बताये  जाते  हैं ||
यह श्रमिक प्रशिक्षण केंद्र....................................||1||
इस श्रमिक प्रशिक्षण का आशय श्रमिकों को सबल बनाना है,
सौहार्द - ऐकता - अखंडता का हर दिल में दीप ज़लाना है |
हर  देश-भक्त के दिल में यहाँ स्वाभिमान ज़गाये जाते हैं ||
यह श्रमिक प्रशिक्षण केंद्र .........................................||2||
श्रमिकों  को  निज  कर्तव्यों  से परिचित करवाया जाता है,
कैसे  उनका  निर्वहन  करें  यहाँ  खूब  सिखाया  जाता है |
अधिकार और दायित्व  सिखा श्रमवीर  बनाये  जाते हैं ||
यह श्रमिक प्रशिक्षण केंद्र .....................................||3||
हम  देश को आगे  बढ़ा सकें यह  ज़ज्वा ज़गाया  जाता है,
अपने  हक़  को  कैसे  पायें  यह  भी  सिखलाया ज़ाता है |
इसलिए  यहाँ  विद्वानों  के  व्याख्यान  कराये  जाते  हैं ||
यह श्रमिक प्रशिक्षण केंद्र ......................................||4||
यहाँ  साधारण  श्रमिकों  में  भी  नेतृत्व  ज़गाया जाता है,
एकीकृत  श्रमसंघों  को  और  मज़बूत  बनाया  जाता  है |
श्रमसंघों  से   इसलिए  यहाँ  श्रमवीर  बुलाये  जाते  हैं ||
यह श्रमिक प्रशिक्षण केंद्र .....................................||5||
श्रमवीरों  की  शिक्षा  का  काम  श्रमसंघों  से  करवाना है,
इसलिए  सभी  श्रमसंघों  को  इस  काविल हमें  बनाना  है |
ऐसे  सुविचारों  के  सब  में  विस्वास   ज़गाये  जाते  हैं ||
यह श्रमिक प्रशिक्षण केंद्र ......................................||6||

Sunday, August 21, 2011

अन्ना की हुंकार

अन्ना  की  हुंकार  से  डर  गयी  है   सरकार,
ज़नता का जन-लोकपाल ही इसका अब उपचार |
कल तक जो बाग़ी विकट दिखते थे खूंख्वार,
आज सभी वो दिख रहे दुबकी* पूंछ सियार ||
हम सबने अब तक सहा दिन-दिन भ्रष्टाचार,
इस  पापी  सरकार  का  निर्मम  अत्याचार |
मग़र आज सब ज़न खड़े लिए साथ हथियार,
बापू  ने  जो  दिए  थे  सत्य, अहिंसा, प्यार ||
क्षेत्र,  जाति  और  धर्म  का चोला  दिया उतार,
हर  भारत-वासी  खड़ा  सबकी  एक  पुकार |
भ्रष्टाचारी   अब   हटें   ख़त्म  हो  भ्रष्टाचार,
भारत-माँ   को  छल  रहे   भागें  वो  गद्दार ||
दिग्गी की घिग्गी बंधी गया कपिल भी हार,
मनमोहन जी सोचते कहाँ फंस गया यार |
गए तिवारी जी दुबक बंद किये मुख द्वार,
अन्ना के रण का बिगुल दिन-दिन भरे उछार ||
बालक,  बूढ़े  और  सब  माँ-बहनों  का  प्यार,
आन्दोलन में बढ़ रही  ज्वानों की यलगार** |
ज़न-लोकपाल  लाए  बिना  मानेंगे  ना  हार,
आज़ादी  के  समर  में  जान  भी  देंगे  वार ||
*छुपी हुयी     **आवाज़

Monday, August 15, 2011

अपनी भारत-माता

उसको देख-देख मन में ये ख़याल आता है,
जान भी गर वार दूँ तो नहीं कुछ ज्यादा है|
बुरा  कोई  बोले  बोल खून खौल जाता है,
अच्छी  बातें करे  तो गुरूर  बढ़  जाता है|
खुशहाली और शांति शौर्य कि ये महामाया है,
हरा,  श्वेत,   केसरिया  रँग  ये  बताता  है|
तीन रँग के आँचल में सबको रखा संभाल,
नहीं कोई और ऐसी अपनी भारत-माता है|
हिन्दू, मुस्लिम, सिख या ईसाई नहीं जानती ये,
सब इसके सपूत उनमें खूब प्रेम बाँटती है|
नानक, रहीम, ईसा मसीह का देश है ये,
इसकी अखंडता का लोहा सब मानते हैं|
गाँधी, तिलक, लाला, भगत के इस देश में,
हर बालक कि आत्मा में आज़ाद समाया है|
अपनी    इस   ऐकता   को   हिलने   नहीं   देंगे,
चाहे जान भी जाये पर झंडा झुकना नहीं मांगता है|
अपना   तिरंगा  सदा  यूँ   ह़ी  लहराता  रहे,
आज भी 'अशोक' सिर्फ यही दुआ मांगता है|

Thursday, June 16, 2011

"आन्दोलन - कब तक???"

अंग्रेजों के शोषण से, जन जीवन त्रस्त हुआ था,
तब श्रम संघ आन्दोलन का, भारत में उदय हुआ था |
काम अधिक और कम वेतन, असुरक्षित था जन-जीवन |
पिछड़ापन और अनपढ़ता से, उदासीन था हर मन ||
औरत  बूढों  बच्चों  से  भी  काम  लिया  जाता था |
तब श्रम संघ................................................||१||
शिक्षा की थी कमी, श्रमिक एकत्र नहीं हो पाया |
नियोजकों  ने मिलकर के, अपना एक नियम बनाया ||
बिना अनुमति काम छोड़ना भी अपराध हुआ था |
तब श्रम संघ................................................||2|| 
सन अठारह सौ चौवन में था, जाल मीलों का फैला |
अठारह सौ पछपन में, उठी चिंगारी हुआ उजाला ||
शोराब शहापुर जी ने श्रम आन्दोलन शुरू किया था |
तब श्रम संघ................................................||३||
श्रम आन्दोलन के, पौधे को कुछ महापुरुषों ने सींचा |
पौधा बढ़कर पेढ़ बने, इसलिये समय को खींचा ||
शिक्षित करने श्रमिक, रात्रि विद्यालय शुरू किया था |
तब श्रम संघ................................................||४||
सन अठारह सौ चौरासी में, श्रम आन्दोलन कुछ तेज़ हुआ |
श्री एन. एम्. लोखंडे था नाम, पहला श्रम नेता प्रकट हुआ ||
सन अठारह सौ नब्बे में  प्रथम, श्रम संघ का गठन हुआ था |
तब श्रम संघ................................................||५||
उसी समय श्रमिकों की दशा में, कुछ सुधार था आया |
साप्ताहिक अवकाश, काम का नियत समय भी पाया ||
वेतन की भी तिथि सुनिश्चित, कर दिखलाया था |
तब श्रम संघ................................................||६||
नयी सदी में समय तिलक, गाँधी - लाला का आया |
मजदूरों को किया संगठित, खुद का चैन गंवाया ||
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस, संगठन बनाया था |
तब श्रम संघ................................................||७||
नयी सदी में नयी उमंगों, ने फिर पींग बढ़ाया |
अच्छे नेता मिले, संगठन हितवर्धक बन पाया ||
दुर्घटना का मुआवजा, तब मिलना शुरू हुआ था |
तब श्रम संघ................................................||८||
चला स्वदेशी आन्दोलन, बंगाल-विभाज़न आया |
श्रम संघ आन्दोलन ने तभी, कुछ उग्र रूप दिखलाया ||
लोक-तिलक को सज़ा हुयी, एक नया मोड़ आया था |
तब श्रम संघ................................................||९||
समय गुज़रता गया, श्रमिक का लगा सुधरने जीवन |
किया शुरू फिर गांधी जी ने, असहयोग आन्दोलन ||
तभी श्रमिक संघों को उचित, दर्ज़ा मिल पाया था |
तब श्रम संघ................................................||१०||
सन उन्नीस सौ बीस, समय ने नया मार्ग दिखलाया |
लाला जी अध्यक्ष हुए, एटक संगठन बनाया ||
चमन लाल, एन.एम्.जोशी, मोती,नेहरू का संग था |
तब श्रम संघ................................................||११||
आन्दोलन का बढ़ा दबदबा, श्रमिकों ने हक़ पाया |
सन उन्नीस सौ छब्बीस संग, श्रम संघ अधिनियम लाया ||
श्रम संघों को प्रथम बार, पंजीकृत करवाया था |
तब श्रम संघ................................................||१२||
संग समय के संघों में, बर्चस्व भाव फिर आया |
वाम-पंथियों  ने संघों में, भारी सेंध लगाया ||
हुआ विभाज़न संघों का, वह बुरा समय आया था |
तब श्रम संघ................................................||१३||
उन्नीस सौ चौंतीस, समय "एटक" अधिवेशन का था |
पंडित हरिहर नाथ शास्त्री, ने संपन्न किया था ||
सब घटकों को बुला, साथ में विलय कराया था |
तब श्रम संघ................................................||१४||
श्रम संघ आन्दोलन जब तक, पहले संकट से उबरा |
विश्व युद्ध की काली छाया, ने फिर उसको घेरा ||
आपातकाल के आने से, भारी व्यवधान हुआ था |
तब श्रम संघ................................................||१५||
नौ अगस्त सन बयालीस, जन-मन आक्रोश भरा था |
अंग्रेजो ! भारत छोडो, बापू ने तभी कहा था ||
शेरों की दहाड़ से फिर, हर गोरा दहल गया था |
तब श्रम संघ................................................||१६||
सन उन्नीस सौ बयालीस, एक और सफलता लाया |
श्रमिक मामलों की ख़ातिर, एक पूरक पक्ष बनाया ||
त्रि-पक्षीय मशबरे का तब से, मार्ग प्रशस्त हुआ था |
तब श्रम संघ................................................||१७||
तीन मई सन सेंतालीस, इंटक का जन्म हुआ था |
सरदार पटेल ने इंटक का, वह सूत्र-पात किया था ||
तब पांच लाख से अधिक श्रमिक का, पहला संघ बना था |
तब श्रम संघ................................................||१८||
देश भक्ति और देश प्रेम, वह सुखद समय भी लाया |
भारत को अंग्रेजों के, चंगुल से मुक्त कराया ||
पंद्रह अगस्त सन सेंतालीस को, देश स्वतंत्र हुआ था |
तब श्रम संघ................................................||१९||
स्वतंत्रता के बाद देश ने, जो संविधान अपनाया |
श्रमिकों को आज़ादी से, जीना उसने सिखलाया ||
श्रम आन्दोलन उद्देश्य पूर्ण, करके दिखलाया था |
तब श्रम संघ................................................||२०||
कई दशकों के बाद समय, ऐसा ही फिर आया है |
सकल देश में  भ्रष्ट व्यवस्था, चोरों का  डेरा  है ||
आज़ादी के बाद कहाँ, किसने ऐसा सोचा था |
तब श्रम संघ................................................||२१||
गाँधी जी का पुनः आज, अन्ना अवतार हुआ है |
भ्रष्टाचारी, काला-धन, हर दिल की चुभन बना है ||
पूरा कर लो आज उसे, जो सपना कल देखा था |
तब श्रम संघ................................................||२२||
तब भी शोषित श्रमिक हुआ, अब फिर से वही दशा है |
देशी अंग्रेजों का फिर, यहाँ अत्याचार बढ़ा है ||
आन्दोलन को प्रबल करो, लो छीन जो हक़ अपना था |
तब श्रम संघ................................................||२३||

Friday, June 10, 2011

आओ संकल्प करें !!!

गाँधी तेरे देश में ये कैसा राज आया है,
जालिमों ने आज फिर से खूब ज़ुल्म ढाया है |
आत्मा भी कांपती है उनकी दरिंदगी से,
तुमने जिनके हाथों में इस देश को थमाया है ||


राम श्याम नानक रहीम के इस देश में,
नेताओं के वेशधारी राक्षसों कि माया है |
रक्षकों ने मज़लूमों पर चाबुक चलाया देखो,
जालियां वाले बाग़ का इतिहास दोहराया है ||

भारत माँ के धन को लूट दुनियाँ में छुपाया है,
वापस लाओ बोला तो हर चोर बौखलाया है |
महिलाओं और बच्चों पर भी तरस नहीं आया देखो,
मनमोहन ने कंस जैसा कृत्य कर दिखाया है ||

रिश्वतखोरी भ्रष्टाचार खूब क़हर ढाया है,
आज फिर से भारत माँ ने हम सबको पुकारा है |
सच्ची आज़ादी कि ख़ातिर सच्चे देश भक्त बनो,

आओ मिल संकल्प करें देश को बचाना है ||

Tuesday, April 19, 2011

एक खामोश चाहत

मैंने हर मोड़ पर तेरे होने को चाहा,
पर हर बार तेरे न होने को पाया|
कितनी मासूम है ये चाहत.......
जो दिन के आखिरी पहर के ढलने तक,
तेरा इंतज़ार करने को तैयार है||

बेकरारी करार में गुज़रे,

ज़िन्दगी सिर्फ प्यार में गुज़रे||
मेरे हिस्से में सिर्फ खार आ जाएँ,
उनका हर दिन बहार में गुज़रे||
क्या बताऊँ मैं दिल की हालत को,
सैकड़ों ग़म खुमार में गुज़रे||
उनको खोकर जो दिन भी गुज़रे है,
धुंध और गुबार में गुज़रे||
ज़िन्दगी का हर एक पल...सिर्फ,
उनके इंतजार में गुज़रे||

Saturday, April 16, 2011

ऐ दुनियां के हिन्दू जागो

ऐ दुनियां के हिन्दू जागो,
अब वक्त नहीं है सोने का |
हम बहुत सह चुके ज़ुल्मो-सितम,
अब समय नहीं चुप रहने का||
इस देश का हिन्दू ह़ी हर-पल,
था जीता रहा औरों के लिए|
इतिहास गवाही देता है,
वह क्षमाशील था सबके लिए||
मुस्लिम और सिख, ईसाई को,
रखा हमने भाई की तरह|
वो आस्तीन के सांप हमें,
डसते ह़ी रहे नागों की तरह||
कभी देश की आज़ादी के लिए,
था प्राणों का बलिदान किया|
अब देश धर्म खतरे में है,
क्यों अब तक हमने सहन किया?
खुद धर्म आवाहन करता है,
बढ़कर आगे संकल्प करो|
यह हिद राष्ट्र हिन्दू का है,
बाकी को चकनाचूर करो||

कोहरे के मौसम

कोहरे का मौसम आया है, हर तरफ अंधेरा छाया है। मेरे प्यारे साथी-2, हॉर्न बजा, यदि दिखे नहीं तो, धीरे जा।। कभी घना धुंध छा जाता है, कुछ भी तुझे...