Saturday, June 22, 2019

क्षमा मांग लो...

भरा पड़ा है देश, धर्म के गद्दारों से।
गूंज रहा परिवेश विरोधी नक्कारों से।।
भारत तेरे टुकड़े होंगे, श्वर आता है।
अफ़ज़ल का आवाह्न देश की विद्यालय से।।
सत्ता के सरदारों को, कुछ शर्म न आती।
रक्षक के सीने पर पत्थर के वारों से।।
कहते हैं कश्मीर, देश की आन बान है।
पूछो ज़रा तिरंगे में लिपटी लाशों से।।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में, देश बंट रहा।
क्या होता है महज़ खोखले संवादों से।।
भेदभाव उन्मूलन का, ज़िम्मा था जिन पर।
जातिवाद का खेल खेलते हैं तन मन से।।
कैसे भूलेगा देश, सदी के नालायक को।
भेंट कर रहा दुश्मन के सेना नायक से।।
क्यों कर लें मन शांत, शहीदों की माँ बेवा।
पाक प्रेम की चर्चा संसद गलियारों से।।
वतन परस्ती क्या होती है, तुम क्या जानो।
मर मिटने का हुनर सीख लो रखवालों से।।
सीमा पर जांबाज़, देश के लाल न होते।
क्या रह पाता महफूज़ देश कंटक तारों से।।
एक बात निकम्मे, राजनीति के बंदर सुन लो।
लालच की बदबू आती है किरदारों से।।
हो खत्म देश से, नफरत का अब नग्न ताण्डव।
यह विनती है जन जन की प्यारी सरकारों से।।
दुश्मन कर दो खत्म, देश के अंदर बाहर।
क्षमा मांग लो देश भक्त सब परिवारों से।।

Friday, June 21, 2019

खुश रहा जाए...

कभी उनसे, कहीं मिलने की कुछ तरकीब हो जाये,
कुपित जीवन के पतझड़ में, कभी एक फूल खिल जाये।
सुना है हर धड़कते दिल के कुछ अरमान होते हैं,
मेरा मन भी, किसी के मन से मिल गुलज़ार हो जाये।।
अगर ख्वाबों की मूरत का, कभी दीदार हो जाये,
मुझे भी ज़िंदगी के रूखेपन से, प्यार हो जाये।
सुना है प्रेम का दरिया धधकती आग होता है,
तपिश पाकर ये जीवन भी, कनक जैसा चमक जाये।।
बहुत बेचैन है ये मन, कहो कैसे जिया जाये,
हो अपनों में बेगानापन, ज़हर कैसे पिया जाये।
भरी महफ़िल की इन तनहाइयों में, हम अकेले हैं,
धड़कते दिल के क्रंदन का, शमन कैसे किया जाये।।

चमन गुलज़ार है बे-शक, उसी में खुश रहा जाये,
अगर बदरंग भी हो रंग, फिर भी चुप रहा जाये।
ये जीवन एक छलावा है अमर कोई न आता है,
स्वयं सम्मान में खुश रह, सभी को खुश रखा जाये।।

Thursday, June 20, 2019

आज का मेहताब

जन्म लेते ही, औरों का मोहताज था,
अपने दम से, न चलने का ढंग था जिसे।
जब जवानी का उसको, नशा चढ़ गया,
वो किसी को भी, कुछ भी समझता नहीं।।

अपने अपनो की, इज्जत की परवाह नहीं,
ना गुनाहों के अपयश का डर है जिसे।
रब के कानून को जो, कुचलता गया,
उम्र के कायदों को, समझता नहीं।।

ना तो स्नेह मन में, न सम्मान है,
सबका भगवान बनने की, ख्वाहिश जिसे।
चार दिन ज़िंदगी में, वो बढ़ क्या गया,
आदमी, आदमी को, समझता नहीं।।

ज़िंदगी एक दिन, खत्म होना ही है,
इस अटल सत्य का भी, पता है जिसे।
जाने किन शोहरतों पर उसे नाज़ है,
अपना अंतिम सफर खुद चलेगा नहीं।।

नफरतों से भरी है, फ़िज़ां हर तरफ,
प्रेम का एक दिया, है जलाना तुझे।
माँ, पिता की उम्मीदों का, मेहताब है,
रोशनी दे तिमिर क्यों, हटाया नहीं।।

- अशोक शर्मा
मोबाइल :- +917977468759

Sunday, June 16, 2019

जन्म देने वाले...

जन्म देने वाले, तू इतना तो बोल रे,
कैसे चुकाऊँ इन, साँसों का मोल रे...
गर्भ में संभाला मुझे, माँ का सहारा बनकर,
सुध बुध नहीं थी तूने, सहा मेरा बोझ रे...
कैसे चुकाऊँ इन....
ज्यों ज्यों बढ़ा जीवन में, तूने फरिस्ता बनकर,
जीवन सुधारा मेरा, दिया मुझे बोध रे...
कैसे चुकाऊँ इन....
शिक्षित कराया और, शक्ति अपार देकर,
खुद को खपाया लेकिन, दिया मुझे ओज़ रे...
कैसे चुकाऊँ इन....
अपने ही दम से चलूँ, औरों को सहारा देकर,
सदा यही चाहा, कुछ मांगा नहीं और रे...
कैसे चुकाऊँ इन....
सब कुछ दिया है तूने, मुझे दातार बनकर,
मेरे शीश पर है तेरी, दुआ अनमोल रे...
कैसे चुकाऊँ इन....

Monday, June 10, 2019

ग़ज़ल

जिन्हें हम याद रखते हैं, हृदय के पाक बंधन से,
वो अक्सर दूर रहकर भी, हमेशा पास होते हैं।
तरसती आँख से ओझल हैं, यादों से रुलाते जो,
प्रकट होकर खयालों में, वही अक्सर हंसाते हैं।।

नहीं समझेगी दुनियाँ प्यार के, पावन फसाने को,
जो अपने हैं नहीं वो ही, दिलों को लूट जाते हैं।
करो चाहे लाख कोशिश भूलने की, उन विचारों को,
लहर आते ही पत्थर से, इरादे टूट जाते हैं।।

नहीं मुमकिन है दुनियाँ में, बिना शर्तों के रह पाना,
खयालों का भवन, ख्वाबों की ईंटों से बनाते हैं।
है कैसी दिल की मजबूरी, समझ हम क्यों नहीं पाते,
जिन्हें हम पा नहीं सकते, क्यों दिल मे बसते जाते हैं।।

कई रिश्ते विरासत के, हमारे साथ होते हैं,
क्यों हम विश्वास की खातिर, रकीबों को ही चुनते हैं।
गुलों से खार हैं बेहतर, जो दामन थाम लेते हैं,
मगर फितरत है उनकी, जख्म देने से न डरते हैं।।

जरूरत है बहुत छोटी, सहज जीवन को जीने की,
क्यों लालच से इसे हम, और मुश्किल सा बनाते हैं।
अटल सच है कि जाना है, कफ़न की ओट में तनहा,
क्यों ममता, मोह, माया में, निरंतर फंसते जाते हैं।।

Saturday, June 8, 2019

तुम सदा खुश रहो...

तुम सदा खुश रहो, तुम सदा खुश रहो,
तुम सदा खुश रहो, ये दुआ है हमारी।
सबकी खुशियां बनो, मुस्कुराते रहो,
कभी राहों में आये न, मुश्किल तुम्हारी।।
तुम सदा खुश रहो........।।

जन्मदिन सैकड़ों बार आता रहे,
और पल पल बढ़ें, सारी खुशियाँ तुम्हारी।
सबकी सेवा यूं ही, अनवरत तुम करो,
जिनकी आशा बनी है, ये कोशिश तुम्हारी।।
तुम सदा खुश रहो........।।

दीन दुखियों की सेवा, परमधर्म हो,
जन्मदिन पर करो, ये प्रतिज्ञा निराली।
तुम जहां हाथ रख दो, वो रोशन रहे,
ऐसा यश दे खुदा, बाज़ुओं में तुम्हारी।।
तुम सदा खुश रहो........।।

Monday, June 3, 2019

आज की दुनियाँ

मैं क्यों आया इस दुनियां में,
क्या मेरी है औकात यहां।
मन क्यों नहीं इसपर मनन करे,
किस धोखे में इंसान यहाँ।।

किस क्षण कब कैसे क्या होगा,
किसको है इसका ज्ञान यहां।
क्यों सोच रहा कल परसों की,
नहीं पल भर का अनुमान यहाँ।।

झूंठे दुनियाँ के रिश्ते सब,
बस मतलब का है खेल यहाँ।
मिथ्या जीवन की मिथक शान,
फिर क्यों खोया इंसान यहाँ।।

कुछ रिश्ते रक्त रवायत के,
कुछ हमने आकर बुने यहाँ।
मतलब के हल हो जाते ही,
नहीं रहता कोई साथ यहाँ।।

दो जिस्म मगर एक जान थे जो,
जन्मों के बंधन बंधे यहाँ।
एक ठेस लगी वो कहर हुआ,
रिश्तों पर खंज़र चले यहाँ।।

कुछ मिले सफर में अपने से,
उनपर अपना वश ही था कहाँ।
जब तक दिल किया चले संग वो,
दिल भरते ही जाते भूल यहाँ।।

सबकी चाहत तुम करो सिर्फ,
कठपुतली जैसे खेल यहाँ।
गर, अगर मगर कुछ बोल दिया,
फिर नहीं तुम्हारी खैर यहाँ।।

मेरा आगमन कर्ममय है,
वही करना है निष्काम सदा।
मत सोचो किसे खुशी रखना,
किसको होता है कष्ट यहाँ।।

Thursday, May 30, 2019

विदा गीत

कर्म क्षेत्र से आज आप, सेवानिवृत्त हो जाओगे।
रोज-रोज घर आफिस के, इस चक्कर से छुट जाओगे।।
एक बात होगी लेकिन, जो अतिशय कष्ट बढ़ाएगी।
रेल कुटुम्ब के इस आलय को, याद हमेशा आओगे।।

पुलकित हृदय, प्रफुल्लित चेहरे, सहज विदाई देते हैं।
शतक वर्ष तक स्वस्थ रहो, ईश्वर से विनती करते हैं।।
मगर एक शंका है दिल में कैसे यकीं दिलाओगे।
रेल सफ़र के संबंधों को, कभी भुला नहीं पाओगे।।

जिस निष्ठा प्रेम समर्पण से, इस रेल चमन का ध्यान रखा।
हम सबकी आशा से बढ़कर, घर बगिया को महकाओगे।।
बस एक अनुग्रह अपना भी, दिल से इसको स्वीकार करो।
इन प्रेम से सिंचित रिश्तों पर, आशीष सदा बरसओगे।।

Wednesday, May 1, 2019

तुम बिन...

मिथ्या है जीवन तुम बिन, कुछ बातें आज बताता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा, तुम सुनो आज मैं कहता हूँ।।

जब से तुम जीवन में आईं, प्रथक कल्पना भूल गया,
नियति के सम-विषम समय में, संग चलना स्वीकार किया।
तुम और मैं से हम बनने तक, हर बाधा को पार किया,
गुज़रे पल-पल क्षण-क्षण का, स्मरण तुम्हें करवाता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा........

तुमने कभी कुछ नहीं मांगा, मैंने खुद कुछ नहीं दिया,
खाली हाथों नीरस जीवन, में हमने विस्तार किया।
हालातों के कठिन थपेड़ों, को तुमने संग सहन किया,
उस अभाव के भावों से, दो-चार तुम्हें करवाता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा.....

हम सबकी छोटी खुशियों पर, तुमने जो बलिदान किया,
अपने हिस्से की रोटी तक, को भी तुमने बाँट दिया।
बच्चों की मुस्कान रहे, इसलिए न कुछ अरमान जिया,
नहीं छुपा है मुझसे कुछ, यह आज तुम्हें बतलाता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा.......

विषम काल में मुझसे छुपकर, तुमने जो विषपान किया,
मेरे टूटे अरमानों का दंश, हमेशा सहन किया।
ग़म के आंसू पिये सदा, खुशियों को घर मे लुटा दिया,
उफ तक नहीं किया तुमने, पीड़ा को सहज समझता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा.....

मन बे-शक तकरार करे, पर दिल ने तुमसे प्यार किया,
हृदय कभी पल भर विरक्ति का, भाव नहीं स्वीकार किया।
जब तुम होती दुखी, क्लेश मन में अपार था सहन किया,
सोच नहीं सकता मैं तुमसे, जुदा कभी रह सकता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा.....

तुम बिन भी जीवन होगा, इसपर विचार तो नहीं किया,
क्षणिक दूरियों ने ही मन को, अंदर तक झकझोर दिया।
नहीं सोचता कब किसने, किस पर कितना उपकार किया,
जैसे दुनियां में आये, वैसा प्रस्थान चाहता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा.....

Wednesday, March 20, 2019

प्रण कर लो...


हम देशभक्ति के रंगों से, होली खेलेंगे प्रण कर लो।
आज़ाद, भगतसिंह, राजगुरु, बाबू सुभाष के रंग भर लो।।

सेना को गाली देते जो, कानून व्यवस्था पर छोड़ो,
तुम नीच, अधम, गद्दारों का, सामाजिक बहिष्कार कर दो।
फिर भी कोई दुष्ट न माने तो, बारूद से पिचकारी भर लो,
हम देशभक्ति के रंगों से, होली खेलेंगे प्रण कर लो।

सरहद पर सैनिक वीर खड़े, प्राणों पर दांव खेलते हैं,
उसका सबूत जो मांग रहे, उन्हें आतंकी घोषित कर दो।
सर कलम करो मक्कारों का, उस रक्त से धरती को रंग लो।
हम देशभक्ति के रंगों से, होली खेलेंगे प्रण कर लो।

देश के अंदर घुसे हुए, पाकी कुत्तों का अंत करो,
देशद्रोहियो देश छोड़ दो, श्वर में 'जन-प्रवाद' कर दो।
आतंकवादियों के चमचो, तुम कितना भी जी-जी कर लो।
हम देशभक्ति के रंगों से, होली खेलेंगे प्रण कर लो।

नापाक देशद्रोही कायर, सत्ता के श्वान जहां भी हों,
अब समय आ गया है, वोटों की गोली से छलनी कर दो।
सरकार बनाने देशभक्त, बेदाग सिपाही को चुन लो।
हम देशभक्ति के रंगों से, होली खेलेंगे प्रण कर लो।

कोहरे के मौसम

कोहरे का मौसम आया है, हर तरफ अंधेरा छाया है। मेरे प्यारे साथी-2, हॉर्न बजा, यदि दिखे नहीं तो, धीरे जा।। कभी घना धुंध छा जाता है, कुछ भी तुझे...