मरना तो मैं चाहता ही नहीं,
मगर जिन्दा भी कहाँ हूँ।
जिंदगी ढूँढता हूँ बस,
मुर्दों के शहर में ........
अपने ईमान को बेचा है बस,
दो वक्त की रोटी के लिए।
अब सच को ढूँढता हूँ मैं,
झुन्ठो के शहर में.......
दौलत को चाहा है सदा,
पैसों से मुहब्बत की है।
अब प्यार ढूँढता हूँ इस,
बेगाने शाहर में..........
सन्देश मैं देने चला था,
अमन का हर हाल में।
सुख चैन ढूँढता हूँ अब,
दहशत के शहर में........
इंसानियत की राह में,
इंसानियत न मिल सकी।
इंसान ढूँढता हूँ अब,
हैवान - ऐ - शहर में......
सोचा था मैं इंसान बन,
इंसानियत से जी सकूँ।
पर खुद को ढूँढता हूँ अब,
सुनसान शहर में..........