Sunday, August 25, 2013

कहाँ गया पुरुषार्थ पुरुष का…?

कहाँ गया पुरुषार्थ पुरुष का,
कहाँ गया भय उनके मन का,
माँ - बेटी की मान मर्यादा,
कहाँ गया सम्मान बहन का।
कातर ह्रदय आज रोता है,
क्यों हो रहा पतन मानव का,
पढ़े लिखे विद्वान दिखें पर,
अन्दर से मन है दानव का।
पल-पल अत्याचार बढ़ रहा,
क्या होगा अब हाल वतन का,
मासूमों पर कहर ढा रहे,
साहस बढ़ा आज दुर्ज़न का।
दिन-दिन कलयुग प्रबल हो रहा,
ह्रदय कठोर हुआ मानव का,
बहन-बेटियां डर से सहमी,
दूभर हुआ सफ़र जीवन का।
सकल देश में रोज़ हो रहा,
चीर हरण माता-बहनों का,
बहशी और दरिंदों में अब,
नहीं रहा भय किसी किसम का।
भक्षक ही भक्षक दीखते हैं,
डरता है मन हर अबला का,
शहर-शहर से चीख उठ रही,
कब होगा अवतार कृष्ण का।

Saturday, August 24, 2013

आर-पार हो जाने दो…!



अब तो भारत के वीरों को भी, दो-दो हाथ दिखने दो,
जो रण की भेरी बजा रहा, अब उसको मज़ा चखाने दो।
हर बार वो मुँह की खाता है, लेकिन उसको कुछ शर्म नहीं,
हर बार खूब समझाया पर, उसके सुधरे कुछ कर्म नहीं।
क्यों मौत से आँखें मिला रहा, अब तो उसको समझाने दो,
जो रण की भेरी बजा रहा.…………………….…।
हर बार पाक सीमाओं पर, गोला बारी करवाता है,
कश्मीर के भाई को उसके, भाई से ही लड़वाता है। 
है कश्मीरी का सगा कौन, अब तो उसको बतलाने दो,
जो रण की भेरी बजा रहा.………………………।
खाने के लिए दाने की कमी, वो खुद क्या अस्त्र चलाएगा,
जिसने उसको फुसलाया है, वो खुद भी धोखा खायेगा।
अब समय आ गया है उसको, सच्चाई से मिलवाने दो,
जो रण की भेरी बजा रहा.………………………।
भारत में घुसकर धोखे से, वीरों पर वार किया जिसने,
सबके विस्वास धीरता को, कायरता से कुचला जिसने।
भारत के वीर सपूतों को, अब तो बदला ले लेने दो,
जो रण की भेरी बजा रहा.…………………….।
आतंकवाद का लश्कर भी, हर बार वहीं से आता है,
भारत के दिए प्रमाणों को, बेईमान सदा झुठलाता है।
भारत की सेना को अब तो, सच का रण-बिगुल बजाने दो,
जो रण की भेरी बजा रहा.…………………….।
भारत माता के आँचल से, सीमा पर दुष्ट खेलते हैं,
ना-पाक हरकतें पापी की, हम निर्बल सद्रश झेलते हैं।
बहुत हो गयी राजनीति, अब आर-पार हो जाने दो,
जो रण की भेरी बजा रहा.………………………

कोहरे के मौसम

कोहरे का मौसम आया है, हर तरफ अंधेरा छाया है। मेरे प्यारे साथी-2, हॉर्न बजा, यदि दिखे नहीं तो, धीरे जा।। कभी घना धुंध छा जाता है, कुछ भी तुझे...