Sunday, August 21, 2011

अन्ना की हुंकार

अन्ना  की  हुंकार  से  डर  गयी  है   सरकार,
ज़नता का जन-लोकपाल ही इसका अब उपचार |
कल तक जो बाग़ी विकट दिखते थे खूंख्वार,
आज सभी वो दिख रहे दुबकी* पूंछ सियार ||
हम सबने अब तक सहा दिन-दिन भ्रष्टाचार,
इस  पापी  सरकार  का  निर्मम  अत्याचार |
मग़र आज सब ज़न खड़े लिए साथ हथियार,
बापू  ने  जो  दिए  थे  सत्य, अहिंसा, प्यार ||
क्षेत्र,  जाति  और  धर्म  का चोला  दिया उतार,
हर  भारत-वासी  खड़ा  सबकी  एक  पुकार |
भ्रष्टाचारी   अब   हटें   ख़त्म  हो  भ्रष्टाचार,
भारत-माँ   को  छल  रहे   भागें  वो  गद्दार ||
दिग्गी की घिग्गी बंधी गया कपिल भी हार,
मनमोहन जी सोचते कहाँ फंस गया यार |
गए तिवारी जी दुबक बंद किये मुख द्वार,
अन्ना के रण का बिगुल दिन-दिन भरे उछार ||
बालक,  बूढ़े  और  सब  माँ-बहनों  का  प्यार,
आन्दोलन में बढ़ रही  ज्वानों की यलगार** |
ज़न-लोकपाल  लाए  बिना  मानेंगे  ना  हार,
आज़ादी  के  समर  में  जान  भी  देंगे  वार ||
*छुपी हुयी     **आवाज़

Monday, August 15, 2011

अपनी भारत-माता

उसको देख-देख मन में ये ख़याल आता है,
जान भी गर वार दूँ तो नहीं कुछ ज्यादा है|
बुरा  कोई  बोले  बोल खून खौल जाता है,
अच्छी  बातें करे  तो गुरूर  बढ़  जाता है|
खुशहाली और शांति शौर्य कि ये महामाया है,
हरा,  श्वेत,   केसरिया  रँग  ये  बताता  है|
तीन रँग के आँचल में सबको रखा संभाल,
नहीं कोई और ऐसी अपनी भारत-माता है|
हिन्दू, मुस्लिम, सिख या ईसाई नहीं जानती ये,
सब इसके सपूत उनमें खूब प्रेम बाँटती है|
नानक, रहीम, ईसा मसीह का देश है ये,
इसकी अखंडता का लोहा सब मानते हैं|
गाँधी, तिलक, लाला, भगत के इस देश में,
हर बालक कि आत्मा में आज़ाद समाया है|
अपनी    इस   ऐकता   को   हिलने   नहीं   देंगे,
चाहे जान भी जाये पर झंडा झुकना नहीं मांगता है|
अपना   तिरंगा  सदा  यूँ   ह़ी  लहराता  रहे,
आज भी 'अशोक' सिर्फ यही दुआ मांगता है|

कोहरे के मौसम

कोहरे का मौसम आया है, हर तरफ अंधेरा छाया है। मेरे प्यारे साथी-2, हॉर्न बजा, यदि दिखे नहीं तो, धीरे जा।। कभी घना धुंध छा जाता है, कुछ भी तुझे...