वही इंसानियत एक बार फिर जगाई जाये।
खुशियों की इन दीपमालाओं में,
एक लौ इंसानियत की भी जलाई जाये।
जला दो फुलझड़ी से नफरतों को यारो,
कि प्यार ही प्यार बस नज़र आये,
शरहदों को सजा दो मुहब्बत के चिरागों से ,
उस तरफ हो अमन इस तरफ भी बहार आये।
आइये दिवाली कुछ इस तरह से मनाई जाये,
फिर से हो 'राम-राज' हर दिल से दुआ की जाये।
कि प्यार ही प्यार बस नज़र आये,
शरहदों को सजा दो मुहब्बत के चिरागों से ,
उस तरफ हो अमन इस तरफ भी बहार आये।
आइये दिवाली कुछ इस तरह से मनाई जाये,
फिर से हो 'राम-राज' हर दिल से दुआ की जाये।