कहाँ गया पुरुषार्थ पुरुष का,
कहाँ गया
भय उनके मन का,
माँ - बेटी की मान मर्यादा,
कहाँ गया
सम्मान बहन का।
कातर ह्रदय आज रोता है,
क्यों हो रहा पतन मानव का,
पढ़े लिखे विद्वान दिखें पर,
अन्दर से
मन है दानव का।
पल-पल अत्याचार बढ़ रहा,
क्या होगा अब हाल वतन का,
मासूमों पर कहर ढा रहे,
साहस बढ़ा आज
दुर्ज़न का।
दिन-दिन कलयुग प्रबल हो रहा,
ह्रदय कठोर हुआ मानव का,
बहन-बेटियां डर से सहमी,
दूभर हुआ सफ़र
जीवन का।
सकल देश में रोज़ हो रहा,
सकल देश में रोज़ हो रहा,
चीर हरण माता-बहनों का,
बहशी और दरिंदों में अब,
बहशी और दरिंदों में अब,
नहीं रहा भय किसी किसम का।
भक्षक ही भक्षक दीखते हैं,
डरता है मन हर अबला का,
शहर-शहर
से चीख उठ रही,
कब होगा अवतार कृष्ण का।
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