मिथ्या है जीवन तुम बिन, कुछ बातें आज बताता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा, तुम सुनो आज मैं कहता हूँ।।
जब से तुम जीवन में आईं, प्रथक कल्पना भूल गया,
नियति के सम-विषम समय में, संग चलना स्वीकार किया।
तुम और मैं से हम बनने तक, हर बाधा को पार किया,
गुज़रे पल-पल क्षण-क्षण का, स्मरण तुम्हें करवाता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा........
तुमने कभी कुछ नहीं मांगा, मैंने खुद कुछ नहीं दिया,
खाली हाथों नीरस जीवन, में हमने विस्तार किया।
हालातों के कठिन थपेड़ों, को तुमने संग सहन किया,
उस अभाव के भावों से, दो-चार तुम्हें करवाता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा.....
हम सबकी छोटी खुशियों पर, तुमने जो बलिदान किया,
अपने हिस्से की रोटी तक, को भी तुमने बाँट दिया।
बच्चों की मुस्कान रहे, इसलिए न कुछ अरमान जिया,
नहीं छुपा है मुझसे कुछ, यह आज तुम्हें बतलाता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा.......
विषम काल में मुझसे छुपकर, तुमने जो विषपान किया,
मेरे टूटे अरमानों का दंश, हमेशा सहन किया।
ग़म के आंसू पिये सदा, खुशियों को घर मे लुटा दिया,
उफ तक नहीं किया तुमने, पीड़ा को सहज समझता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा.....
मन बे-शक तकरार करे, पर दिल ने तुमसे प्यार किया,
हृदय कभी पल भर विरक्ति का, भाव नहीं स्वीकार किया।
जब तुम होती दुखी, क्लेश मन में अपार था सहन किया,
सोच नहीं सकता मैं तुमसे, जुदा कभी रह सकता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा.....
तुम बिन भी जीवन होगा, इसपर विचार तो नहीं किया,
क्षणिक दूरियों ने ही मन को, अंदर तक झकझोर दिया।
नहीं सोचता कब किसने, किस पर कितना उपकार किया,
जैसे दुनियां में आये, वैसा प्रस्थान चाहता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा.....
अंतर्मन की सत्य व्यथा, तुम सुनो आज मैं कहता हूँ।।
जब से तुम जीवन में आईं, प्रथक कल्पना भूल गया,
नियति के सम-विषम समय में, संग चलना स्वीकार किया।
तुम और मैं से हम बनने तक, हर बाधा को पार किया,
गुज़रे पल-पल क्षण-क्षण का, स्मरण तुम्हें करवाता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा........
तुमने कभी कुछ नहीं मांगा, मैंने खुद कुछ नहीं दिया,
खाली हाथों नीरस जीवन, में हमने विस्तार किया।
हालातों के कठिन थपेड़ों, को तुमने संग सहन किया,
उस अभाव के भावों से, दो-चार तुम्हें करवाता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा.....
हम सबकी छोटी खुशियों पर, तुमने जो बलिदान किया,
अपने हिस्से की रोटी तक, को भी तुमने बाँट दिया।
बच्चों की मुस्कान रहे, इसलिए न कुछ अरमान जिया,
नहीं छुपा है मुझसे कुछ, यह आज तुम्हें बतलाता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा.......
विषम काल में मुझसे छुपकर, तुमने जो विषपान किया,
मेरे टूटे अरमानों का दंश, हमेशा सहन किया।
ग़म के आंसू पिये सदा, खुशियों को घर मे लुटा दिया,
उफ तक नहीं किया तुमने, पीड़ा को सहज समझता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा.....
मन बे-शक तकरार करे, पर दिल ने तुमसे प्यार किया,
हृदय कभी पल भर विरक्ति का, भाव नहीं स्वीकार किया।
जब तुम होती दुखी, क्लेश मन में अपार था सहन किया,
सोच नहीं सकता मैं तुमसे, जुदा कभी रह सकता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा.....
तुम बिन भी जीवन होगा, इसपर विचार तो नहीं किया,
क्षणिक दूरियों ने ही मन को, अंदर तक झकझोर दिया।
नहीं सोचता कब किसने, किस पर कितना उपकार किया,
जैसे दुनियां में आये, वैसा प्रस्थान चाहता हूँ।
अंतर्मन की सत्य व्यथा.....
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