Wednesday, November 7, 2012

"तुम्ही ने पुकारा"

न  देतीं  अगर  तेरी  यादें  सहारा,
खुदा जाने क्या हश्र होता हमारा।
रहा सोचता तेरे आँचल के नीचे,
बिगाड़ेंगे  तूफ़ान अब क्या हमारा।


मेरी राहें थीं जिससे रोशन हमेशा,
न जाने कहाँ खो गया वो सितारा।
तूफान  में  है  घिरी  मेरी  कश्ती,
नज़र भी नहीं आ रहा है किनारा।


कभी तुमने जिसको दिया था सहारा,
वही  आज  भी  हूँ  मगर  बे-सहारा।
बे-वफ़ा तुमको कहने की जुर्रत नहीं है,
मुकद्दर  ने  ही  साथ  छोड़ा  हमारा।

4 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

Sunder Panktiyan

ओंकारनाथ मिश्र said...

गहरे भावों से ओत प्रोत है आपकी यह कविता. सुन्दर रचना.

Anonymous said...

Bahut sundar

Ansuya Desai said...

Bahut sundar

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