न देतीं अगर तेरी यादें सहारा,
खुदा जाने क्या हश्र होता हमारा।
रहा सोचता तेरे आँचल के नीचे,
बिगाड़ेंगे तूफ़ान अब क्या हमारा।
मेरी राहें थीं जिससे रोशन हमेशा,
न जाने कहाँ खो गया वो सितारा।
तूफान में है घिरी मेरी कश्ती,
नज़र भी नहीं आ रहा है किनारा।
कभी तुमने जिसको दिया था सहारा,
वही आज भी हूँ मगर बे-सहारा।
बे-वफ़ा तुमको कहने की जुर्रत नहीं है,
मुकद्दर ने ही साथ छोड़ा हमारा।
खुदा जाने क्या हश्र होता हमारा।
रहा सोचता तेरे आँचल के नीचे,
बिगाड़ेंगे तूफ़ान अब क्या हमारा।
मेरी राहें थीं जिससे रोशन हमेशा,
न जाने कहाँ खो गया वो सितारा।
तूफान में है घिरी मेरी कश्ती,
नज़र भी नहीं आ रहा है किनारा।
कभी तुमने जिसको दिया था सहारा,
वही आज भी हूँ मगर बे-सहारा।
बे-वफ़ा तुमको कहने की जुर्रत नहीं है,
मुकद्दर ने ही साथ छोड़ा हमारा।
4 comments:
Sunder Panktiyan
गहरे भावों से ओत प्रोत है आपकी यह कविता. सुन्दर रचना.
Bahut sundar
Bahut sundar
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