मौत के हर कदम और करीब आ रहा हूँ,
मैं जीवन के सच से ही घबरा रहा रहा हूँ।
नहीं चाहिए ये ज़हाँ इसकी दौलत,
नहीं माँगता हूँ ज़माने की शौहरत।
मैं दुनियाँ के डर से सहम सा गया हूँ,
बिना ज़ल का दरिया मेरे सामने है।
उसी में कहीं डूबता जा रहा हूँ,
मौत के हर कदम…. .............।।
यहाँ कोई न अपना सभी हैं पराये,
वो झूँठे हैं रिश्ते जो हमने हैं पाए।
जो ऱब से था रिश्ता विसर सा गया हूँ,
जितना भी चाहूँ गले से लगाना।
मैं उतना ही और फासला पा रहा हूँ,
मौत के हर कदम…. ...............।।
क्या लाया था क्या साथ लेकर है जाना,
मिला जो भी जीवन का झूँठा बहाना।
मैं खुद झूँठ का खँडहर बन गया हूँ,
जब - जब ये सोचा चढ़ूँ सच की सीढ़ी।
उसी गर्त में फिर से गिरता रहा हूँ,
मौत के हर कदम…. .............।।
न मैया न पापा न भाई न बहना,
न पत्नी न बेटा न बेटी का रहना।
रिश्तों की नुमाइस समझने लगा हूँ,
मगर मैं भी माया की दुनियाँ में खुद को।
कहीं ढूँढने का यतन कर रहा हूँ,
मौत के हर कदम…... ..........।।
मैं जीवन के सच से ही घबरा रहा रहा हूँ।
नहीं चाहिए ये ज़हाँ इसकी दौलत,
नहीं माँगता हूँ ज़माने की शौहरत।
मैं दुनियाँ के डर से सहम सा गया हूँ,
बिना ज़ल का दरिया मेरे सामने है।
उसी में कहीं डूबता जा रहा हूँ,
मौत के हर कदम…. .............।।
यहाँ कोई न अपना सभी हैं पराये,
वो झूँठे हैं रिश्ते जो हमने हैं पाए।
जो ऱब से था रिश्ता विसर सा गया हूँ,
जितना भी चाहूँ गले से लगाना।
मैं उतना ही और फासला पा रहा हूँ,
मौत के हर कदम…. ...............।।
क्या लाया था क्या साथ लेकर है जाना,
मिला जो भी जीवन का झूँठा बहाना।
मैं खुद झूँठ का खँडहर बन गया हूँ,
जब - जब ये सोचा चढ़ूँ सच की सीढ़ी।
उसी गर्त में फिर से गिरता रहा हूँ,
मौत के हर कदम…. .............।।
न मैया न पापा न भाई न बहना,
न पत्नी न बेटा न बेटी का रहना।
रिश्तों की नुमाइस समझने लगा हूँ,
मगर मैं भी माया की दुनियाँ में खुद को।
कहीं ढूँढने का यतन कर रहा हूँ,
मौत के हर कदम…... ..........।।
1 comment:
वाह बहुत खूब
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