पहली ही मुलाकात में वो मन में रह गया,
इंसानियत की सारी दास्तान कह गया।
मिलता रहा हूँ यूँ तो हज़ारों से उम्र भर,
वो सख्स था जो दिल को दिलनशींन कर गया।
वाणी थी मधुर और चतुर सी जुबान थी,
चहरे पै दिल की बात कहती सी वो शान थी।
चुपचाप सा चेहरा मनो-गुलज़ार कर गया,
मैं भी अदा का उसकी कद्र दान हो गया।
कहते हैं बात करने को पहचान चाहिए,
वो खुद मुझे मिलकर नया अरमान दे गया।
फिर-फिर मिलूं मिलकर करूँ मिलने की आस फिर,
वो यूँ मिला मुझसे कि मेरा दिल ही ले गया।
मन ने कहा तुम भी चलो उसकी ही राह पर,
सच्चे बनो सादा रहो बस काम बन गया।
मन में सदा रखना महज़ मंगल की कामना,
बस मान लो हर सख्स 'मन का मीत' बन गया।
इंसानियत की सारी दास्तान कह गया।
मिलता रहा हूँ यूँ तो हज़ारों से उम्र भर,
वो सख्स था जो दिल को दिलनशींन कर गया।
वाणी थी मधुर और चतुर सी जुबान थी,
चहरे पै दिल की बात कहती सी वो शान थी।
चुपचाप सा चेहरा मनो-गुलज़ार कर गया,
मैं भी अदा का उसकी कद्र दान हो गया।
कहते हैं बात करने को पहचान चाहिए,
वो खुद मुझे मिलकर नया अरमान दे गया।
फिर-फिर मिलूं मिलकर करूँ मिलने की आस फिर,
वो यूँ मिला मुझसे कि मेरा दिल ही ले गया।
मन ने कहा तुम भी चलो उसकी ही राह पर,
सच्चे बनो सादा रहो बस काम बन गया।
मन में सदा रखना महज़ मंगल की कामना,
बस मान लो हर सख्स 'मन का मीत' बन गया।
"मैं जब पहली बार बड़े भाई कविराज 'नमन' जी से मिला तो उनकी
मुलाकात से प्रेरित होकर लिखे शब्द आपके समक्ष प्रेषित हैं।"
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