मैली
हो गयी राजनीति, क्यों देशभक्त पथ-भ्रम हो गए,
संस्कृति
भारत वर्ष की बदली, क्यों आदर्श ख़तम हो गए।
छुआछूत
थे चले मिटाने, जाति - धर्म मैं क्यों खो गए,
मानवता
और समता वाले, वादे कहाँ दफ़न हो गए।
राजनीति
यदि सेवा है, क्यों लालच में नेता पड़ गए,
करें
छल-कपट जनता से, क्यों झूंठ के वो आदी हो गए।
विद्यादान
धर्म शिक्षक का, क्यों वह धर्मविमुख हो गए,
ऐकलव्य
से अटल इरादे, शिष्यों के मन से कहाँ गए।
ऋषियों
का यह देश था फिर क्यों, पापी आज सबल हो गए,
जिनको
ब्रह्मऋषि कर पूजा, क्यों दिल को छलनी कर गए।
मात-पिता
की सेवा से जहाँ, गणपति प्रथम पूज्य हो गए,
जननी-जनक
से बढ़कर क्यों वहां, पत्थर के मंदिर हो गए।
माता
कहकर पूजा जिसको, अबला कह रक्षक बन गए,
उसका
ही अपमान हो रहा, क्यों हम मूक-बधिर बन गए।
दुष्चरित्र
- दुर्जन - दुष्टों के, क्यों हम पक्षादार बन गए,
भ्रष्टाचार
चरम सीमा पर, क्यों उसके अनुचर बन गए।
नक्सल
और आतंकवाद से, डरकर चुप क्यों बैठ गए,
वीर
शहीदों का सिर ले गए, दुश्मन को क्यों भूल गए।
रक्त
नहीं अब तन में रहा क्यों, कायरता की हद कर गए,
भारत
माँ के वीरों की क्यों, कुर्बानी को भूल गए।
मन
विह्वल भाव विभोर, हृदय से इतने आज व्यथित हो गए,
अक्षम
अधम तंत्र से हारे, क्यों अ'शोक हम सब हो गए।
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