जीवन में भरे विकारों से,
जब रिक्त नहीं है अंतर्मन।
तब उपदेशों की गंगा में,
नित स्नानों का अर्थ नहीं।
घर के ज़ईफ़ को चैन नहीं,
उनके मन अगर वेदना हो।
फिर मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा,
जाने का कोई अर्थ नहीं।
मन मनुज अगर मानवता नहीं,
तकलीफ किसी को देता हो।
ऐसे नृशंस का वसुधा पर,
जीवित रहने का अर्थ नहीं।
सत में दुर्बल का बल न बने,
झूंठे बलवान का संग करे।
दीपक हो शमन अनल भड़के,
ऐसे समीर का अर्थ नहीं।
छोटे से जीवन के पल क्षण,
बीते जाते हैं दिन प्रतिदिन।
मेहमान कुछ दिनों का जग में,
तेरे अहंकार का अर्थ नहीं।
जब चार दिनों के जीवन में,
दो दिन आश्रित ही रहना है।
फिर शेष दो दिनों मस्त रहो,
गम मय जीवन का अर्थ नहीं।
जब रिक्त नहीं है अंतर्मन।
तब उपदेशों की गंगा में,
नित स्नानों का अर्थ नहीं।
घर के ज़ईफ़ को चैन नहीं,
उनके मन अगर वेदना हो।
फिर मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा,
जाने का कोई अर्थ नहीं।
मन मनुज अगर मानवता नहीं,
तकलीफ किसी को देता हो।
ऐसे नृशंस का वसुधा पर,
जीवित रहने का अर्थ नहीं।
सत में दुर्बल का बल न बने,
झूंठे बलवान का संग करे।
दीपक हो शमन अनल भड़के,
ऐसे समीर का अर्थ नहीं।
छोटे से जीवन के पल क्षण,
बीते जाते हैं दिन प्रतिदिन।
मेहमान कुछ दिनों का जग में,
तेरे अहंकार का अर्थ नहीं।
जब चार दिनों के जीवन में,
दो दिन आश्रित ही रहना है।
फिर शेष दो दिनों मस्त रहो,
गम मय जीवन का अर्थ नहीं।
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