गली-गली में आन्दोलन और,
जन - जन में आक्रोश है।
बापू तेरे देश की हालत,
फिर से डांवा - डोल है।।
भ्रष्टाचार चरम सीमा पर,
पाप बढ़ा घनघोर है।
धर्म की कोई बात न करता,
अधरम का ही जोर है।।
रक्षक ही भक्षक बन बैठे,
रखवाला ही चोर है।
पैसों से कानून बिक रहा,
बात बड़ी दिल-तोड़ है।।
मानव की तो हुयी तरक्की,
मानवता कमजोर है।
ताकत से चल रही विरासत,
प्यार को नहीं ठौर है।।
ज्यों-ज्यों कदम बढे कलयुग के,
जीवन हुआ कठोर है।
माँ बहनों की घर के बाहर,
लाज़ लुटे हर ओर है।।
किस से कहूँ ह्रदय की पीड़ा,
कोई न देता गौर है।
सुबक-सुबक कर दिल है रोता,
विह्वल भाव - विभोर है।।
जन - जन में आक्रोश है।
बापू तेरे देश की हालत,
फिर से डांवा - डोल है।।
भ्रष्टाचार चरम सीमा पर,
पाप बढ़ा घनघोर है।
धर्म की कोई बात न करता,
अधरम का ही जोर है।।
रक्षक ही भक्षक बन बैठे,
रखवाला ही चोर है।
पैसों से कानून बिक रहा,
बात बड़ी दिल-तोड़ है।।
मानव की तो हुयी तरक्की,
मानवता कमजोर है।
ताकत से चल रही विरासत,
प्यार को नहीं ठौर है।।
ज्यों-ज्यों कदम बढे कलयुग के,
जीवन हुआ कठोर है।
माँ बहनों की घर के बाहर,
लाज़ लुटे हर ओर है।।
किस से कहूँ ह्रदय की पीड़ा,
कोई न देता गौर है।
सुबक-सुबक कर दिल है रोता,
विह्वल भाव - विभोर है।।
3 comments:
Sundar Kavita
Thank you so much Prachi
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