कर्म क्षेत्र से आज आप, सेवानिवृत्त हो जाओगे।
रोज-रोज घर आफिस के, इस चक्कर से छुट जाओगे।।
एक बात होगी लेकिन, जो अतिशय कष्ट बढ़ाएगी।
रेल कुटुम्ब के इस आलय को, याद हमेशा आओगे।।
पुलकित हृदय, प्रफुल्लित चेहरे, सहज विदाई देते हैं।
शतक वर्ष तक स्वस्थ रहो, ईश्वर से विनती करते हैं।।
मगर एक शंका है दिल में कैसे यकीं दिलाओगे।
रेल सफ़र के संबंधों को, कभी भुला नहीं पाओगे।।
जिस निष्ठा प्रेम समर्पण से, इस रेल चमन का ध्यान रखा।
हम सबकी आशा से बढ़कर, घर बगिया को महकाओगे।।
बस एक अनुग्रह अपना भी, दिल से इसको स्वीकार करो।
इन प्रेम से सिंचित रिश्तों पर, आशीष सदा बरसओगे।।
रोज-रोज घर आफिस के, इस चक्कर से छुट जाओगे।।
एक बात होगी लेकिन, जो अतिशय कष्ट बढ़ाएगी।
रेल कुटुम्ब के इस आलय को, याद हमेशा आओगे।।
पुलकित हृदय, प्रफुल्लित चेहरे, सहज विदाई देते हैं।
शतक वर्ष तक स्वस्थ रहो, ईश्वर से विनती करते हैं।।
मगर एक शंका है दिल में कैसे यकीं दिलाओगे।
रेल सफ़र के संबंधों को, कभी भुला नहीं पाओगे।।
जिस निष्ठा प्रेम समर्पण से, इस रेल चमन का ध्यान रखा।
हम सबकी आशा से बढ़कर, घर बगिया को महकाओगे।।
बस एक अनुग्रह अपना भी, दिल से इसको स्वीकार करो।
इन प्रेम से सिंचित रिश्तों पर, आशीष सदा बरसओगे।।