मरना तो मैं चाहता ही नहीं,
मगर जिन्दा भी कहाँ हूँ।
जिंदगी ढूँढता हूँ बस,
मुर्दों के शहर में ........
अपने ईमान को बेचा है बस,
दो वक्त की रोटी के लिए।
अब सच को ढूँढता हूँ मैं,
झुन्ठो के शहर में.......
दौलत को चाहा है सदा,
पैसों से मुहब्बत की है।
अब प्यार ढूँढता हूँ इस,
बेगाने शाहर में..........
सन्देश मैं देने चला था,
अमन का हर हाल में।
सुख चैन ढूँढता हूँ अब,
दहशत के शहर में........
इंसानियत की राह में,
इंसानियत न मिल सकी।
इंसान ढूँढता हूँ अब,
हैवान - ऐ - शहर में......
सोचा था मैं इंसान बन,
इंसानियत से जी सकूँ।
पर खुद को ढूँढता हूँ अब,
सुनसान शहर में..........
7 comments:
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
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कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
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इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये
स्वागत है.
बहुत ही सुंदर रचना है। ब्लाग जगत में द्वीपांतर परिवार आपका स्वागत करता है।
pls visit.......
www.dweepanter.blogspot.com
सोचा था मैं इंसान बन,
इंसानियत से जी सकूँ.
पर खुद को ढूँढता हूँ अब,
सुनसान शहर में.
Dard bharee kavita...bahut sundar!
Bahut bahut dhanyawad aap sabhi ka
Very nice sir.
www.gorakhnathbalaji.blogspot.com
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