दीवानगी मदहोश करके, दे गयी धोखा हमें,
क्या पता था इस कदर, तड़पायेगी वो अब हमें|
ये कहाँ मालूम था, कब उम्र यूँ ढल जायेगी,
ज़िन्दगी की वो सामां कब, बिन हवा बुझ जायेगी|
पर अँधेरा हो गया, अहले वफ़ा की रह में||
दीवानगी मदहोश करके...............
दर्द सीने में उठा पर, मर्ज़ तो कुछ था नहीं,
था कहाँ ज़र-अर्ज़ मैं, जीने का गुर समझा नहीं|
खो गया कब वो सलीका, ज़िन्दगी की चाह में||
दीवानगी मदहोश करके...............
ज़िन्दगी जब थी तो जिंदा, लाश बनकर रह गए,
जब नहीं स्वासें बचीं, तब दौड़ने का दम भरे|
खो गए अपने जो थे, गैरों के ज़िक्रे-आम में||
दीवानगी मदहोश करके................
है बड़ी खुदगर्ज़ दुनियां, कोई भी अपना नहीं,
नेक बन करना भलाई, चाहतें रखना नहीं|
ज़िन्दगी सर हो रहेगी, काफ़िले-संसार में||
दीवानगी मदहोश करके..............
Saturday, April 3, 2010
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कोहरे के मौसम
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जिन्हें हम याद रखते हैं, हृदय के पाक बंधन से, वो अक्सर दूर रहकर भी, हमेशा पास होते हैं। तरसती आँख से ओझल हैं, यादों से रुलाते जो, प्रकट ...
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