Monday, August 15, 2011

अपनी भारत-माता

उसको देख-देख मन में ये ख़याल आता है,
जान भी गर वार दूँ तो नहीं कुछ ज्यादा है|
बुरा  कोई  बोले  बोल खून खौल जाता है,
अच्छी  बातें करे  तो गुरूर  बढ़  जाता है|
खुशहाली और शांति शौर्य कि ये महामाया है,
हरा,  श्वेत,   केसरिया  रँग  ये  बताता  है|
तीन रँग के आँचल में सबको रखा संभाल,
नहीं कोई और ऐसी अपनी भारत-माता है|
हिन्दू, मुस्लिम, सिख या ईसाई नहीं जानती ये,
सब इसके सपूत उनमें खूब प्रेम बाँटती है|
नानक, रहीम, ईसा मसीह का देश है ये,
इसकी अखंडता का लोहा सब मानते हैं|
गाँधी, तिलक, लाला, भगत के इस देश में,
हर बालक कि आत्मा में आज़ाद समाया है|
अपनी    इस   ऐकता   को   हिलने   नहीं   देंगे,
चाहे जान भी जाये पर झंडा झुकना नहीं मांगता है|
अपना   तिरंगा  सदा  यूँ   ह़ी  लहराता  रहे,
आज भी 'अशोक' सिर्फ यही दुआ मांगता है|

2 comments:

jayasree balu said...

Beautiful poem

Ashok Sharma said...

Thank you very much madam ji...

कोहरे के मौसम

कोहरे का मौसम आया है, हर तरफ अंधेरा छाया है। मेरे प्यारे साथी-2, हॉर्न बजा, यदि दिखे नहीं तो, धीरे जा।। कभी घना धुंध छा जाता है, कुछ भी तुझे...