Thursday, December 22, 2011

गुरु-जन

ईश्वर से भी बड़ा है, गुरुजन का स्थान,
ऐसे मानवश्रेष्ठ को, शत-शत बार प्रणाम|
माटी का पुतला बना, करता श्वांस प्रदान,
गुरुजन के ह़ी यतन से, बनता वह इन्शान|
कोरा तन-मन भेजकर, देता उसे जहान,
पढ़ा-लिखा दें प्रेरणा, गुरुजन का है काम|
मानव को घेरे खड़ा, चहुँ तरफ अज्ञान,
स्वयं सुपुर्द-ऐ-ख़ाक हो, गुरुजन देते ज्ञान|
'तमसो मा ज्योतिर्गमय', मांगें सब वरदान,
गुरुजन के सानिध्य बिन, राह नहीं आसान|
गुरुजन के निर्देश का, सदा करें सम्मान,
जीवन की कठिनाइयाँ, लगती फूल सामान|
भांति-भांति के तज्ञ हैं, दुनियां का सम्मान,
गुरुओं ने ह़ी किया है, उनका अनुसंधान|
इसी सबब में भी करूँ, उनका आज आव्हान,
गरिमा गुरु-पद की सदा, बनी रहे ये शान|

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