Friday, April 30, 2010

भारत माता

भारत माता है मेरी इसके लिए मैं,
सर कटाकर भी सदा लड़ता रहूँगा|
"मैं" नहीं तो क्या हुआ वो तो रहेगा,
सांस भी जिसने अभी तक ली नहीं है|
पर यूँ ही तुमसे ग़दर का हर जनम,
हर घडी आवाहन मैं करता रहूँगा||
तुम वो दानव हो जिसे अपने न उसके,
माँ - बहन - बच्चे - बड़े दिखते नहीं हैं|
इसलिए तो रौंदकर निर्दोष जानें,
कह रहे हो मजहवी जेहाद है ये|
पर निकम्मों ध्यान से सुन लो जरा,
"मैं" हर जनम इस ज़ुल्म से लड़ता रहूँगा||
क्या छल - कपट - धोखा तेरा ईमान है,
क्या बम - धमाके - आग तेरी शान है?
है दम तो आकर सामने दिखला ज़रा,
इंसानियत तुझको खड़ी ललकारती है|
है  भरी  तेरे  जिगर  में  आग  जो,
उस आग को अपने लहू से रोक दूंगा||
हैं  तेरे  ना-पाक  दिल  में  जो  इरादे,
वो  कभी  पूरे  न  होंगे  ज़ुल्म-जादे|
इंसानियत में घोलता है क्यों ज़हर?
नामो-निशां मिट जायेगा कुछ कर फ़िकर|
आजा शरण में आज भी होगी महर,
वर्ना उठा खंज़र ज़िगर में घोप दूंगा||

2 comments:

Anonymous said...

wow !
great thinking man!
keep up the good work n may god bless you!

Ashok Sharma said...

AAPKA SHUKRIYA MITRA.

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