Tuesday, April 19, 2011

एक खामोश चाहत

मैंने हर मोड़ पर तेरे होने को चाहा,
पर हर बार तेरे न होने को पाया|
कितनी मासूम है ये चाहत.......
जो दिन के आखिरी पहर के ढलने तक,
तेरा इंतज़ार करने को तैयार है||

बेकरारी करार में गुज़रे,

ज़िन्दगी सिर्फ प्यार में गुज़रे||
मेरे हिस्से में सिर्फ खार आ जाएँ,
उनका हर दिन बहार में गुज़रे||
क्या बताऊँ मैं दिल की हालत को,
सैकड़ों ग़म खुमार में गुज़रे||
उनको खोकर जो दिन भी गुज़रे है,
धुंध और गुबार में गुज़रे||
ज़िन्दगी का हर एक पल...सिर्फ,
उनके इंतजार में गुज़रे||

1 comment:

Unknown said...

wah wah Ashok ji.....Bahut khub

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