Friday, January 11, 2013
अंतर्मन
फिर क्यों प्राणी गँवा रहा तू, जीवन इनकी तह पाने में।
कब किस से मिलना होगा, कब किस से होगा विरह यहाँ.
कौन कहाँ तक साथ रहेगा, कौन कहाँ हमको छोड़ेगा.
रिश्ते-नाते सगे-सबंधी, जन्मों का है लेखा-जोखा.
कितनी साँसें और बची, कब तक यह धड़कन चलनी है.
अब भी समय बचा है जितना, ढूंढ़ स्वयम को अपने मन में.
Wednesday, January 9, 2013
मन की व्यथा
कैसे कहूँ मन की व्यथा, जज्वा दफ़न सा हो गया,
आज फिर मन से मेरे, शब्दों का दरिया बह गया।
माँ की आँखों में हैं आंसू, मेरा मन भी रो रहा,
बाप के मन का वो डर, फिर से प्रबल सा हो गया।।
भाई का सिर भी झुक गया, मानो शरम के बोझ से,
बहना की सुनकर चीख, उसका भी कलेजा फट गया।
भगवान् भी शरमा गया, अपने ही आविष्कार से,
कमज़र्फ जिंदा घूमते, यमराज मानो डर गया।।
इंशान ज्यों ज्यों बढ़ रहे, इंशानियत कम हो गयी,
भारत की अपनी संस्कृति, दिन-दिन ख़तम सी हो रही।
इस कदर दिल भर गया, प्रतिदिन के अत्याचार से,
ज़िन्दगी मुश्किल ही थी, मरना भी मुश्किल हो गया।।
आज फिर मन से मेरे, शब्दों का दरिया बह गया।
माँ की आँखों में हैं आंसू, मेरा मन भी रो रहा,
बाप के मन का वो डर, फिर से प्रबल सा हो गया।।
भाई का सिर भी झुक गया, मानो शरम के बोझ से,
बहना की सुनकर चीख, उसका भी कलेजा फट गया।
भगवान् भी शरमा गया, अपने ही आविष्कार से,
कमज़र्फ जिंदा घूमते, यमराज मानो डर गया।।
इंशान ज्यों ज्यों बढ़ रहे, इंशानियत कम हो गयी,
भारत की अपनी संस्कृति, दिन-दिन ख़तम सी हो रही।
इस कदर दिल भर गया, प्रतिदिन के अत्याचार से,
ज़िन्दगी मुश्किल ही थी, मरना भी मुश्किल हो गया।।
Friday, January 4, 2013
बापू तेरे देश की हालत
गली-गली में आन्दोलन और,
जन - जन में आक्रोश है।
बापू तेरे देश की हालत,
फिर से डांवा - डोल है।।
भ्रष्टाचार चरम सीमा पर,
पाप बढ़ा घनघोर है।
धर्म की कोई बात न करता,
अधरम का ही जोर है।।
रक्षक ही भक्षक बन बैठे,
रखवाला ही चोर है।
पैसों से कानून बिक रहा,
बात बड़ी दिल-तोड़ है।।
मानव की तो हुयी तरक्की,
मानवता कमजोर है।
ताकत से चल रही विरासत,
प्यार को नहीं ठौर है।।
ज्यों-ज्यों कदम बढे कलयुग के,
जीवन हुआ कठोर है।
माँ बहनों की घर के बाहर,
लाज़ लुटे हर ओर है।।
किस से कहूँ ह्रदय की पीड़ा,
कोई न देता गौर है।
सुबक-सुबक कर दिल है रोता,
विह्वल भाव - विभोर है।।
जन - जन में आक्रोश है।
बापू तेरे देश की हालत,
फिर से डांवा - डोल है।।
भ्रष्टाचार चरम सीमा पर,
पाप बढ़ा घनघोर है।
धर्म की कोई बात न करता,
अधरम का ही जोर है।।
रक्षक ही भक्षक बन बैठे,
रखवाला ही चोर है।
पैसों से कानून बिक रहा,
बात बड़ी दिल-तोड़ है।।
मानव की तो हुयी तरक्की,
मानवता कमजोर है।
ताकत से चल रही विरासत,
प्यार को नहीं ठौर है।।
ज्यों-ज्यों कदम बढे कलयुग के,
जीवन हुआ कठोर है।
माँ बहनों की घर के बाहर,
लाज़ लुटे हर ओर है।।
किस से कहूँ ह्रदय की पीड़ा,
कोई न देता गौर है।
सुबक-सुबक कर दिल है रोता,
विह्वल भाव - विभोर है।।
Thursday, January 3, 2013
नया वर्ष
जन-जीवन उत्कर्ष भरा हो।
गरिमा, गौरव और प्रतिष्ठा,
गगन चूमते शिखर सद्रश हो।
पुरुषारथ - उत्साह - पराक्रम,
पर्वत के सम अचल-अडिग हो।
दुःख, शंका और गम हर मन से,
कोसों दूर नदारद - सम हो।
हमले - दंगे - दुष्कर्मों के,
डर से मुक्त हर-एक जन-मन हो।
करुणा - दया - मदद के सुर से,
ओत - प्रोत हर-एक जीवन हो।
खुशहाली उन्नति और प्रगति,
सदा शिखर की ही मल्लिका हो।
ऐसा सुखमय और आनंदित,
हम सबका जीवन प्रति-क्षण हो।
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कोहरे के मौसम
कोहरे का मौसम आया है, हर तरफ अंधेरा छाया है। मेरे प्यारे साथी-2, हॉर्न बजा, यदि दिखे नहीं तो, धीरे जा।। कभी घना धुंध छा जाता है, कुछ भी तुझे...
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स्वर साम्राज्ञी अमर रहेंगी,सा त सुरों की सरगम में। वतन सदा नम-नयन रहेगा, वाणी के आवाहन में।। काया छोड़ गयीं वो बेशक, नश्वर-देह जमाने में, स्...
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जिन्हें हम याद रखते हैं, हृदय के पाक बंधन से, वो अक्सर दूर रहकर भी, हमेशा पास होते हैं। तरसती आँख से ओझल हैं, यादों से रुलाते जो, प्रकट ...