Wednesday, January 9, 2013

मन की व्यथा

कैसे कहूँ मन की व्यथा, जज्वा दफ़न सा हो गया,
आज फिर मन से मेरे, शब्दों का दरिया बह गया।
माँ  की आँखों में हैं आंसू, मेरा मन भी रो रहा,
बाप के मन का वो डर, फिर से प्रबल सा हो गया।।


भाई का सिर भी झुक गया, मानो शरम के बोझ से,
बहना की सुनकर चीख, उसका भी कलेजा फट गया।
भगवान् भी शरमा गया, अपने ही आविष्कार से,
कमज़र्फ जिंदा घूमते, यमराज
मानो डर गया।।

इंशान ज्यों ज्यों बढ़ रहे, इंशानियत कम हो गयी,
भारत की अपनी संस्कृति, दिन-दिन ख़तम सी हो रही।
इस कदर दिल भर गया, प्रतिदिन के अत्याचार से,
ज़िन्दगी मुश्किल ही थी, मरना भी मुश्किल हो गया।।

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