भरा पड़ा है देश, धर्म के गद्दारों से।
गूंज रहा परिवेश विरोधी नक्कारों से।।
भारत तेरे टुकड़े होंगे, श्वर आता है।
अफ़ज़ल का आवाह्न देश की विद्यालय से।।
सत्ता के सरदारों को, कुछ शर्म न आती।
रक्षक के सीने पर पत्थर के वारों से।।
कहते हैं कश्मीर, देश की आन बान है।
पूछो ज़रा तिरंगे में लिपटी लाशों से।।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में, देश बंट रहा।
क्या होता है महज़ खोखले संवादों से।।
भेदभाव उन्मूलन का, ज़िम्मा था जिन पर।
जातिवाद का खेल खेलते हैं तन मन से।।
कैसे भूलेगा देश, सदी के नालायक को।
भेंट कर रहा दुश्मन के सेना नायक से।।
क्यों कर लें मन शांत, शहीदों की माँ बेवा।
पाक प्रेम की चर्चा संसद गलियारों से।।
वतन परस्ती क्या होती है, तुम क्या जानो।
मर मिटने का हुनर सीख लो रखवालों से।।
सीमा पर जांबाज़, देश के लाल न होते।
क्या रह पाता महफूज़ देश कंटक तारों से।।
एक बात निकम्मे, राजनीति के बंदर सुन लो।
लालच की बदबू आती है किरदारों से।।
हो खत्म देश से, नफरत का अब नग्न ताण्डव।
यह विनती है जन जन की प्यारी सरकारों से।।
दुश्मन कर दो खत्म, देश के अंदर बाहर।
क्षमा मांग लो देश भक्त सब परिवारों से।।
गूंज रहा परिवेश विरोधी नक्कारों से।।
भारत तेरे टुकड़े होंगे, श्वर आता है।
अफ़ज़ल का आवाह्न देश की विद्यालय से।।
सत्ता के सरदारों को, कुछ शर्म न आती।
रक्षक के सीने पर पत्थर के वारों से।।
कहते हैं कश्मीर, देश की आन बान है।
पूछो ज़रा तिरंगे में लिपटी लाशों से।।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में, देश बंट रहा।
क्या होता है महज़ खोखले संवादों से।।
भेदभाव उन्मूलन का, ज़िम्मा था जिन पर।
जातिवाद का खेल खेलते हैं तन मन से।।
कैसे भूलेगा देश, सदी के नालायक को।
भेंट कर रहा दुश्मन के सेना नायक से।।
क्यों कर लें मन शांत, शहीदों की माँ बेवा।
पाक प्रेम की चर्चा संसद गलियारों से।।
वतन परस्ती क्या होती है, तुम क्या जानो।
मर मिटने का हुनर सीख लो रखवालों से।।
सीमा पर जांबाज़, देश के लाल न होते।
क्या रह पाता महफूज़ देश कंटक तारों से।।
एक बात निकम्मे, राजनीति के बंदर सुन लो।
लालच की बदबू आती है किरदारों से।।
हो खत्म देश से, नफरत का अब नग्न ताण्डव।
यह विनती है जन जन की प्यारी सरकारों से।।
दुश्मन कर दो खत्म, देश के अंदर बाहर।
क्षमा मांग लो देश भक्त सब परिवारों से।।
1 comment:
वाह बहुत अच्छा
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