उनसे मिलने की, एक झलक पाने की,
हरदम है रहती, मेरे मन में आशा।
बस यही है ज़माने में, इस ज़िन्दगी की,
वो धूमिल सी आस, और प्यासी हताशा॥
वो जब थे तो रहती थी, इस ज़िन्दगी में,
गुलशन सी खुशबू, गुलाबों की ताज़ा।
हर - एक रात मानो, भरी चांदनी से,
सितारों की महफ़िल में, चन्दा हो राजा॥
हर-एक दिन सुहाना, थी हर-पल में मस्ती,
बसंती पवन जैसे, करती इशारा।
मेरे मन के सागर में, खुशियों की कश्ती,
वो करते थे, चुपके से उसका नज़ारा॥
मगर आज रूठा, वो हमदर्द हमसे,
ये दिल आज गुमसुम है, खोया हुआ सा।
ये आँखें हैं नम, उस जुदाई के ग़म से,
ह्रदय कांपता है, मेरा बेतहाशा॥
फिर भी है मन में, ये विश्वास पूरा,
फलेगी कभी तो, मेरी वो दिलासा।
रहेगा नहीं, मेरा सपना अधूरा,
मिलन से मिटेगी, मेरी वो पिपासा॥
Thursday, January 21, 2010
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कोहरे के मौसम
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