Thursday, March 18, 2010

चाँद सा मुखड़ा

वह चाँद सा मुखड़ा लेकर के, खिड़की में खड़ी हो जाती है |
कोई देख ले उसको एक नज़र, झट से वो सहम सी जाती है || 
हर रोज शाम की बेला में, वह बाल संवारा करती है |
फिर चाँद से सुन्दर चहरे को, दर्पण में निहारा करती है ||
चहरे की दमक, नयनों की चमक, उसकी ये इशारा करती है |
सावन की घटायें देख-देख, तनहायी में आहें भरती है ||
किसी तेज हवा के झोंके से, सिहरन पैदा हो जाती है |
कोई देख ले उसको........................
.............||
एक रोज किसी असमंजस में, आँगन में उतरकर आती है |
सावन  की  मस्त  फुहारों  से,  साड़ी  गीली  हो  जाती  है ||
उसका गदराया यौवन फिर, आँचल में सिमट यूँ जाता है |
मदमस्त कोई पागल साया, जैसे आलिंगन करता है ||
उसकी यह हालत देख लगे, जैसे कोई आग जलाती है |
कोई देख ले उसको........................
.............||
एक रोज़ घटा घनघोर उठी, रिम-झिम रिम-झिम बरसात हुयी |
बिज़ली चमके, पानी बरसे, वह खड़ी खयालों में खोयी हुयी ||
सन-सन करती हुयी मस्त पवन, मानो उसको झकझोर गयी |
प्रियतम को देख बारजे में, वह दौड़ी उससे लिपट गयी |
मन में उसके जो आग लगी, मानो ठंडी हो जाती है|
कोई देख ले उसको..........................
..............|| 

3 comments:

मनोज कुमार said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति!

Ashok Sharma said...

Thanks

Dr. kavita 'kiran' (poetess) said...

sunder geet hai aapka!badhai.

कोहरे के मौसम

कोहरे का मौसम आया है, हर तरफ अंधेरा छाया है। मेरे प्यारे साथी-2, हॉर्न बजा, यदि दिखे नहीं तो, धीरे जा।। कभी घना धुंध छा जाता है, कुछ भी तुझे...