Friday, January 11, 2013

अंतर्मन

                              

हानि-लाभ, जीवन-मृत्यू, और यश-अपयश विधि के हाथों में.

फिर क्यों प्राणी गँवा रहा तू, जीवन इनकी तह पाने में।

 

कब किस से मिलना होगा, कब किस से होगा विरह यहाँ.
सब-कुछ निश्चित पर अनजाना, क्यों ढूंड रहा तू जल पानी में।

 

कौन कहाँ तक साथ रहेगा, कौन कहाँ हमको छोड़ेगा.
किस्मत में सब-कुछ लिखा, क्यों खोज रहा उत्तर प्रश्नों में।

 

रिश्ते-नाते सगे-सबंधी, जन्मों का है लेखा-जोखा.
कितनी डगर कौन संग है, क्यों सोच रहा तू अपने मन में।

 

कितनी साँसें और बची, कब तक यह धड़कन चलनी है.
निश्चित है हर बात यहाँ, क्यों अहम् भरा फिर भी जीवन में।

 

अब भी समय बचा है जितना, ढूंढ़ स्वयम को अपने मन में.
ईश्वर का ही अंश है तू, फिर क्यों न झाँकता अंतर्मन में।

1 comment:

G.N.SHAW said...

कितनी विडम्बना है की कल्याण मोटरमैन लॉबी में आप से बात होते - होते रह गयी | लोग पहचान नहीं पाते है ब्लॉग या फेसबुक के सिवा |मकर संक्रांति की शुभकामनाये |

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