कितना दुशवार था दुनियां का हुनर आना भी।
तुझसे ही फासला रखना, तुझे अपनाना भी।।
कैसी आदाब-ऐ-नुमाइश में लगाई शर्तें।
फूल होना ही नहीं, फूल नज़र आना भी।।
खुद को पहचान के देखे तो ज़रा ये दरिया।
भूल जाएगा समुंदर की तरफ, जाना भी।।
दिल की बिगड़ी हुई आदत से ये उम्मीद न थी।
भूल जाएगा ये एक दिन, तेरा याद आना भी।।
ऐसे रिश्ते का भरम रखना भी कोई खेल नहीं।
तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी।।
तुझसे ही फासला रखना, तुझे अपनाना भी।।
कैसी आदाब-ऐ-नुमाइश में लगाई शर्तें।
फूल होना ही नहीं, फूल नज़र आना भी।।
खुद को पहचान के देखे तो ज़रा ये दरिया।
भूल जाएगा समुंदर की तरफ, जाना भी।।
दिल की बिगड़ी हुई आदत से ये उम्मीद न थी।
भूल जाएगा ये एक दिन, तेरा याद आना भी।।
ऐसे रिश्ते का भरम रखना भी कोई खेल नहीं।
तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी।।
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