Friday, January 1, 2010

बहरी दुनियां


सच को नहीं सुनेगी दुनियां, बनी हुयी बहरी है.
इसी लिए मरुथल को लिखता, नदी बड़ी गहरी है..
दिया झूंठ का संग, समझ सम्मान किया जायेगा.
रहा सत्य के साथ, सिरफिरा मान लिया जायेगा.
सत्य हुआ है कैद, झूँठ की ध्वजा यहाँ फहरी है.
सच को नहीं सुनेगी............................1.
कर छल-कपट-दगा-ह्त्या कर, और जमा कर धन को.
खुल्लम-खुल्ला रहें, तनिक ना शर्म रही नेतन को.
जोड़े धन को लोग कहेंगे, तेरी भलमनसाहत.
हंगामा यदि करें विरोधी, दे दो उनको राहत.
बे-खटके ना-काम सो रहा, स्वयं यहाँ प्रहरी है.
सच को नहीं सुनेगी.............................2.
ले बढ़ा बाहुबल अपना, और बना फ़ौज गुंडों की.
स्वयं पूज्य तू बन जायेगा, लगे लेन पंडों की.
इतना सब हो जाने पर, तू राजनीति के द्वारे जाना.
लेकर फर्जी वोट, जगह मंत्री की पाना.
ये नुस्खे मिल जांयें, समझ तू हुआ बहुत जहरी है.
सच को नहीं सुनेगी..............................3.
मणि-धारी तुम नाग, नगर में तक्षक बनकर रहना.
तुमको कौन मार सकता है, खुद को अमर समझना.
मीत बनाकर शहदमिता सी, जाने कितनी बाला.
जलकर राख मुठी भर हो गयी, तेरी हवस की ज्वाला.
क्या तोलेगी न्याय-तुला, तू नहीं आम शहरी है.
सच को नहीं सुनेगी...............................4.
फर्जी देकर साक्ष्य न्याय को, देओं करारा झटका.
बना झूँठ को सांच, मामला इंक्वारी में अटका.
तू धनपति-बलपति मंत्री, वो अबला बेचारी.
कौन टिकेगा तेरे आगे, तुझसे दुनियां हारी.
नक्कारों के बीच कभी, कोई तूती ठहरी है.
सच को नहीं सुनेगी..............................5.
रोज छपेगा नाम खबर में, काट खूब हंगामा.
बीच सदन में पहुँच, फाड़ दे कुरता और पजामा.
थर-थर कांपें लोग, कहेंगे तुझको राजा-भैया.
फूटे जन-आक्रोश कहोगे, मर गया मेरी मैया.
तभी लिखूं मरुथल को, मरुथल नहीं नदी गहरी है.
बना जटायु देख रहा सब, लोक-नाथ प्रहरी है.
सच को नहीं सुनेगी.............................6.
अशोक शर्मा

2003 में लिखी मेरे मन की व्यथा है, आज कुछ सोचते सोचते फिर से ताज़ा हो गयी.

1 comment:

Unknown said...

सच को नहीं सुनेगी दुनियां, बनी हुयी बहरी है.....
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