हिंदू हैं हम, या मुसलमां हैं हम,
हमें ही नहीं ये, पता क्या हैं हम,
चले थे कहाँ से, कहाँ पहुंचे हम,
मंजिल है क्या ,ये नहीं है इलम.....हिंदू हैं हम........
हिंदू को मारा,मुसलमां थे हम,
मुसलमां को मारा ,तो हिंदू थे हम,
हिंदू थे हम, या मुसलमां थे हम,
किसे हमने मारा, नहीं है इलम...........हिंदू हैं हम.........
जिसे हम कहें, ये हमारा वतन,
ये तो सोचो ,किया किसने इसका सृजन,
जिसने किया है, इसका सृजन,
उसी का जहाँ , है उसी का वतन......हिंदू हैं हम.........
ये कैसा सितम , और ये कैसे यतन,
ख़ुद ही करें, हम वतन का पतन,
सब तो हैं इसके, कर्जदार हम,
करते हैं क्यों, फिर इसी का हनन...........हिंदू हैं हम..........
न तो मन्दिर हैं हम,न ही मस्जिद हैं हम
उसी एक रब के, फ़रिश्ते हैं हम
हम को तो बांटा है, संसार ने ,
उसी पर यकीन, फिर क्यों करते हैं हम.........हिंदू है हम............
आओ ये मिलकर के, खायें कसम,
आपस में झगडा, करेंगे न हम,
रमजान में तो, मुसलमान हम,
होली में, हिंदू का परिवार हम...........हिंदू हैं हम..............
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कोहरे के मौसम
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जिन्हें हम याद रखते हैं, हृदय के पाक बंधन से, वो अक्सर दूर रहकर भी, हमेशा पास होते हैं। तरसती आँख से ओझल हैं, यादों से रुलाते जो, प्रकट ...
5 comments:
Achchhi soch Ashok ji
Bahut khoob
Isko agar koi poora padhega thik se, to galat meaning nikalne ki gunjaish nahi hain. Fantastic!
lovelyyyyyyyyyy sharma ji
aap ki rachnaye kafi marmik hoti hai keep it up jio dil se
Thanks to all
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